नवरात्री की नौ देवियां कौन कौन सी है जानिये
नवरात्री की नौ देवियां कौन कौन सी है |
सभी प्रभु के भक्तों को जय श्री कृष्णा राधे राधे एवं जय माता दी
नवरात्री के पर्व को सभी बड़े ही आस्था के साथ मनाते हैं , इस नवरात्री में नौ दिन नौ देवियों की पूजा की जाती है।
इन नौ देवियों की उत्त्पत्ति इस संसार में किस प्रकार से हुई ये बहुत ही कम लोगों को जानकारी है ,भगवत कृपा से आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं की ये नौ दुर्गा या नौ देवियां कौन कौन सी हैं और उनकी उत्त्पत्ति इस संसार में किस प्रकार से हुई।
सबसे पहली देवी को माँ शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है ,सबसे प्रथम हम माँ शैलपुत्री को बारम्बार प्रणाम करते हैं ,
माँ शैलपुत्री |
शैल का अर्थ होता है शिखर यानी पर्वत , पर्वतो के राजा हिमालय के यहाँ इनका जन्म होने के कारण ही इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इनको बृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है क्यूंकि इनका बाहन बृषभ है इनके दाएं हाथ में त्रिशुल एवं बाएं हाथ में कमल सुशोभित है , इनको सती के नाम से भी जाना जाता है ,गाय पर सवार माँ शैलपुत्री चन्द्रमा को धारण करतीं है ,धार्मिक मान्यता के अनुसार माँ शैलपुत्री की आराधना करने से जातक की कुंडली में चंद्र दोष ठीक हो जाता है।
नवदुर्गा में दूसरी देवी है माँ ब्रह्मचारिणी , सबसे पहले हम माँ ब्रह्मचारिणी को प्रणाम करते हैं
माँ ब्रह्मचारिणी |
देवी माँ का ये रूप अत्यंत ही ज्योतिर्मय एवं
भव्य है।
भव्य है।
माँ ब्रह्मचारिणी अपने दाएं हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल धारण करतीं हैं , भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए नारद जी के कहे अनुसार इन्होने कठोर तपस्या की थी , इसी कठोर तप के कारण माँ को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है।ब्रह्मचारिणी की मन एवं भाव से पूजा करनेसे जिनकी भी कुंडली में मांगलिक दोष है वह मिट जाता है।
नवदुर्गा में तीसरी देवी है माँ चंद्रघंटा , सब पहले हम माँ चन्द्रघण्टा को प्रणाम करते हैं।
माँ चंद्रघंटा |
माँ अपने इसी दिव्य रूप से सभी देवों अथवा लोगो को प्रसन्न करती हैं ,माँ चंद्रघंटा अपने प्रिय वाहन सिंह पर बैठकर अपने दसो हाथों में खडग तलवार ढाल गदा पाश त्रिशूल चक्र चक्र भरेहुए तरकश लिए मंद मंद मुस्कुरा रही होती हैं , माँ चंद्रघंटा की उपासना करने से व्यक्ति में निर्भयता एवं वीरता का विकास होता है , माँ चंद्रघंटा की आराधना करने से जातक के सभी पाप नस्ट हो जाते हैं और जन्म जन्म का डर समाप्त हो जाता है , माँ की उपासना करने से व्यक्ति की कुंडली में शुक्र का दोष समाप्त हो जाता है।
नवदुर्गा में चौथी देवी हैं माँ कुष्मांडा , सबसे पहले हम माँ कुष्मांडा को प्रणाम करते हैं।
माँ कूष्माण्डा |
अपनी हलकी एवं मंद हसीं के कारण ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन देवी को माँ कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है , माँ कुष्मांडा को अस्टभुजा भी कहते हैं क्यूंकि माँ कुष्मांडा की अष्ट भुजा है ,सात भुजाओं में कमंडल , धनुष ,बाण, कमलपुष्प ,अभूतपूर्व कलश , चक्र तथा गदा है ,इसके अलावा आठवे हाथ में सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला है , माँ कुष्मांडा का वाहन सिंह है , माँ कुष्मांडा का वास सूर्यलोक में भीतर है ,सूर्यलोक में रहने की छमता केवक इन्ही में है , नवरात्री के चौथे दिन पवित्र मन से इनकी पूजा करनी चाहिए ,इनकी पूजा करने से सभी रोगों का नाश होजाता है ,माँ कुष्मांडा सूर्य से सम्बंधित रोगों को ठीक करती हैं ,जिन जातकों की कुंडली में सूर्य नीच का हो उनेह माँ कुष्मांडा की पूजा से लाभ होता है।
नवदुर्गा में पांचवी देवी हैं माँ स्कंदमाता , सबसे पहले हम माँ स्कन्द माता की प्रणाम करते हैं।
माँ स्कंदमाता |
नवदुर्गा में छटवी देवी हैं माँ कात्यायिनी देवी सबसे पहले हम माँ कात्यायिनी देवी को प्रणाम करते हैं।
माँ कात्यायनी |
माँ कात्यायिनी देवी उपासना से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और परमपथ की प्राप्ति होती है , माँ की चार भुजायें है
दायीं तरफ की ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है , बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व् नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है ,इनका वाहन भी सिंह है इनका स्वरुप अत्यंत भव्य अथवा दिव्य है ,ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं अथवा भास्वर हैं ,इनकी कृपा से सारे कार्य पूरे हो जाते हैं ,ये वैधनाथ नाम स्थान पर पूजीं गयीं ,माँ कात्यायिनी अमोघफल दायिनी हैं ,भगवान कृष्ण को पति रुप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्ही की पूजा की थी ,माँ कात्यायनी देवी की पूजा करने से कुंवारी कन्यायों का विवाह हो जाता है ,माँ कात्यायिनी देवी बृहस्पति गृह स्वामिनी मानी गयीं है , इनकी पूजा करने से बृहस्पति से सम्बंधित सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।
नवदुर्गा में सातवीं देवी में माँ काल रात्रि देवी , सबसे पहले हम माँ कालरात्रि देवी को प्रणाम करते हैं
माँ कालरात्रि |
जैसा उनका नाम है वैसा ही उनका रूप है , खुलेबालों में अवमास के रात से भी काली माँ कालरात्रि की छवि देखकर ही भूत प्रेत भाग जाते हैं मान का वर्ण काला है माँ के तीन नेत्र हैं , ये तीनो ही नेत्र ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं , इनकी साँसों से अग्नि निकलती रहती है , ये गर्धव की सवारी करतीं हैं ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती हैं दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में हैं , नाम से ही जाना जाता है की इनका रूप भयानक है बाल बिखरे हुए है और गले में विद्युत के सामान चमकने वाली माला है बायीं तरफ हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खडग हैं ,इनका रूप भले ही भयंकर हो पर अपने भक्तों को सदैव ही शुभ फल देने वाली माँ हैं ,काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति हैं , माँ कालरात्रि की पूजा करने से शनि दोष समाप्त हो जाता है।
नवदुर्गा में आठवीं देवी हैं माँ महागौरी , सबसे पहले हम माँ महागौरी को प्रणाम करते हैं।
माँ महागौरी |
नवदुर्गा में नौवीं देवी है माँ सिद्धि दात्री देवी , सबसे पहले हम माँ सिद्धि दात्री देवी को प्रणाम करते हैं।
माँ सिद्धि दात्री |
माँ सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं , नवरात्री के नौवे दिन इनकी पूजा की जाती है , विधि विधान से नवरात्री के नौवे दिन जो भी व्यक्ति माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करता हैं उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जातीं हैं , माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं हैं ,इनका वाहन हैं ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं , इनके दाहिने तरफ के नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है ,इन्ही की अनुकम्पा से ही भगवान् का आधा शरीर नारी का हुआ था इसी कारण वे लोक में अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए ,हर व्यक्ति को माँ सिद्धिदात्री की उपासना करना चाहिए , इनकी कृपामात्र से ही प्राणी सभी दुखों का नाश करके सुखों को प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त करसकता है , माँ सिद्धिदात्री माँ को सेतु गृह की स्वामिनी माना गया है , जो जातक नवरात्री के नौवे दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करता है उनका केतु दोष समाप्त हो जाता है।
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