कलंक चतुर्थी व्रत 2025: पूर्ण कथा, पूजा विधि, नियम और कलंक दूर करने के चमत्कारिक लाभ हिंदी में
कलंक चतुर्थी व्रत क्या है?
कलंक चतुर्थी, जिसे कलंक चतुर्थी व्रत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा रखा जाता है ताकि परिवार से कलंक (दाग) और नकारात्मकता दूर हो और जीवन में सुख-शांति बनी रहे। यह व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
कलंक चतुर्थी व्रत कथा: भगवान कृष्ण और चंद्रमा के शाप की कहानी
बहुत प्राचीन काल की बात है, जब भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला रूप में पृथ्वी पर थे। उस समय एक विशेष दिन आता था जिसे बाद में कलंक चतुर्थी कहा गया। इस दिन चंद्रमा का दर्शन करने से अपशकुन माना जाता था।
कथा का आरंभ
एक बार नारद मुनि ने भगवान कृष्ण को बताया कि कलंक चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने वाले को शाप लगता है। यह शाप उस व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के कलंक, कष्ट और बाधाएं लेकर आता है। इसलिए उस दिन चंद्रमा का दर्शन वर्जित है।
भगवान कृष्ण ने इस बात को समझा और उस दिन चंद्रमा को नहीं देखा। परंतु जो लोग इस दिन चंद्रमा को देखते थे, उनके जीवन में कष्ट और कलंक आता था।
भगवान कृष्ण को लगा कलंक क्यों?
उस दिन भगवान कृष्ण के परिवार में एक ऐसा भी प्रसंग हुआ कि उन्हें भी कलंक लगा। इसके पीछे कारण यह था कि उस दिन चंद्रमा का दर्शन हो गया था, जिससे उनको भी शाप का असर हुआ। इस घटना से सबको यह ज्ञान हुआ कि कलंक चतुर्थी का व्रत रखना और उस दिन चंद्रमा का दर्शन न करना अत्यंत आवश्यक है।
नारद मुनि का संदेश
नारद मुनि ने सभी भक्तों को यह उपदेश दिया कि कलंक चतुर्थी के दिन व्रत करें, पूजा करें और चंद्रमा को देखने से बचें। इस दिन जो व्यक्ति शुद्ध हृदय से व्रत करता है, उसे भगवान की असीम कृपा मिलती है और सभी प्रकार के कलंक से वह मुक्त होता है।
कथा का महत्व
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में कलंक और बुरी नजर से बचने के लिए धार्मिक नियमों का पालन करना चाहिए। कलंक चतुर्थी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के दोष और कलंक दूर होते हैं। इस व्रत को विशेषकर महिलाएं अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए करती हैं।
कलंक चतुर्थी व्रत का फल और लाभ
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जीवन से सभी कलंक और बाधाएं दूर होती हैं।
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परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
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मानसिक शांति मिलती है और मनोबल बढ़ता है।
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भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
कलंक चतुर्थी व्रत का महत्त्व और लाभ
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इस व्रत को करने से परिवार के सभी कलंक और दोष दूर होते हैं।
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व्रत से संतान सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है।
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व्रत रखने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
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यह व्रत सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
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व्रत करने वाले को मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं।
कलंक चतुर्थी पूजा विधि
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व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्वच्छता का ध्यान रखें और स्नान करें।
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साफ स्थान पर कलंक चतुर्थी का पूजा थाल सजाएं, जिसमें दीपक, अगरबत्ती, फल, फूल, सिंदूर, और अक्षत रखें।
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भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या चित्र के सामने पूजा करें।
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व्रत कथा का पाठ करें और भगवान से कलंक दूर करने की प्रार्थना करें।
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पूरे दिन व्रत का पालन करें और शुद्ध आहार ग्रहण करें।
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शाम को पूजा संपन्न कर प्रसाद ग्रहण करें।
कलंक चतुर्थी व्रत के नियम
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व्रत के दिन साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
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मासिक धर्म के दौरान व्रत न रखें।
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व्रत के समय झूठ और बुरा विचार न करें।
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दिनभर व्रत का पालन करें और अनाज का सेवन न करें।
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पूजा के समय श्रद्धा और एकाग्रता से भगवान की आराधना करें।
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