श्री गणेश पुष्पांजलि मंत्र – सम्पूर्ण जानकारी
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पुष्पांजलि मंत्र क्या है?
पुष्पांजलि का शाब्दिक अर्थ है “फूलों की अर्पणा”। यह एक पारंपरिक मंत्र होता है जो पूजा के अंत में भगवान को फूल अर्पित करते समय बोला जाता है।
विशेषकर श्री गणेश को समर्पित इस पुष्पांजलि मंत्र से हम उन्हें अपनी भक्ति और समर्पण अर्पित करते हैं।
वह अत्यंत पवित्र और गूढ़ है, और विशेष रूप से हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों के समापन में देवताओं को अंतिम पुष्प समर्पण स्वरूप प्रस्तुत किया जाता है। यह एक वेदमंत्रों पर आधारित स्तुति है, जिसमें ब्रह्मांडीय शक्तियों, धन के अधिपति कुबेर, तथा सार्वभौमिक राज्य की अभिलाषा प्रकट की जाती है।
🌸 मंत्र पुष्पांजलि पाठ (शुद्ध पाठ एवं अर्थ सहित)
🔶 प्रथम मंत्र:
संस्कृत:
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचंत
यत्र पूर्वे साध्याः संति देवाः॥
भावार्थ:
देवताओं ने यज्ञ के माध्यम से ही यज्ञ का आयोजन किया।
इन्हीं कर्मों (धर्मों) को उन्होंने पहले स्थापित किया।
वे महिमा को प्राप्त कर स्वर्ग (नाक) में स्थित हुए,
जहाँ पूर्वकालीन सिद्ध देवता निवास करते हैं।
➡️ यह मंत्र यज्ञ की महिमा को दर्शाता है, और बताता है कि सृष्टि की रचना भी यज्ञ द्वारा हुई थी। यह भक्ति और समर्पण की सर्वोच्च स्थिति को प्रकट करता है।
🔶 द्वितीय मंत्र:
संस्कृत:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।
नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं।
कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः॥
भावार्थ:
हम परम राजा (राजाधिराज) वैश्रवण (कुबेर) को नमस्कार करते हैं, जो बलशाली और विजयी हैं।
हम उनके सामने अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
वे मेरी इच्छाओं को पूर्ण करें — क्योंकि वे कामेश्वर (इच्छाओं के स्वामी) हैं।
कुबेर, महाराज वैश्रवण को बारंबार नमस्कार है।
➡️ यह मंत्र धन और समृद्धि के देवता कुबेर की स्तुति है, जो सभी कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ हैं। इसे अर्पण कर भक्त धन, वैभव और सफलता की कामना करता है।
🔶 तृतीय मंत्र:
संस्कृत:
ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं
वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं।
समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः
आन्तादापरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळ इति॥
भावार्थ:
हे ईश्वर! हमें साम्राज्य, भौज्य (उत्तराधिकार में प्राप्त राज्य), स्वाराज्य (स्वयं का राज्य), वैराज्य (वीरों का राज्य), पारमेष्ठ्य (श्रेष्ठता), और महाराज्य (महान राज्य) प्राप्त हो।
हमारा राज्य चारों दिशाओं में व्याप्त हो, हम सर्वभौम (पूरे पृथ्वी पर शासन करने वाले), दीर्घायु हों, और समुद्र तक फैली पृथ्वी पर हमारा एकछत्र राज्य हो।
➡️ यह मंत्र राज्य, सत्ता, दीर्घायु और सम्पूर्ण नियंत्रण की कामना है। इसे विशेष रूप से राजसूय यज्ञ जैसे अवसरों पर बोला जाता था, परंतु आज यह पूर्णता और सिद्धि की भावना के साथ प्रयोग होता है।
🔶 चतुर्थ मंत्र:
संस्कृत:
ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो।
मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति॥
भावार्थ:
इस विषय में एक श्लोक गाया गया है:
मरुतगण (देवता) भगवान के चारों ओर परिवेष्टित (घिरे हुए) हैं।
वे उनके घर में निवास करते हैं।
भगवान (ईश्वर) की सभा में समस्त देवगण उपस्थित हैं।
➡️ यह मंत्र दर्शाता है कि सभी देवता एक स्थान पर, एक लक्ष्य के लिए एकत्र हैं। यह एकता, शक्ति और सामूहिक भक्ति का प्रतीक है।
🌼 अंतिम समर्पण पंक्ति:
॥ मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ॥
(मैं यह मंत्र पुष्पांजलि समर्पित करता/करती हूँ।)
✅ मंत्र पुष्पांजलि का महत्व:
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यह पूजा के समापन पर देवताओं को पुष्प अर्पित करने की परंपरा है।
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यह दर्शाता है कि पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति से की गई है।
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यह देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम है।
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यह ज्ञान, समृद्धि, दीर्घायु और विजय की कामना करता है।
🪔 इसका उपयोग कब और कैसे करें?
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समय: किसी भी हवन, गृह प्रवेश, विवाह, पूजा, या आरती के अंत में
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विधि: फूलों की थाली हाथ में लें और इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए भगवान को फूल समर्पित करें।
पुष्पांजलि मंत्र कब और कैसे बोला जाता है?
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यह मंत्र आमतौर पर पूजा के अंत में बोला जाता है
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मंत्र बोलते समय फूलों की थाली हाथ में होनी चाहिए
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भगवान की मूर्ति या तस्वीर के सामने फूल अर्पित करें
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यह शुभ समापन का प्रतीक होता है
पुष्पांजलि मंत्र के लाभ (Benefits):
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पूजा को पूर्णता देता है
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मन को एकाग्र और शांत करता है
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भक्ति और श्रद्धा का भाव जाग्रत करता है
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हर शुभ कार्य के पहले इसे बोलना शुभ माना जाता है
घर का वातावरण सकारात्मक बनाता है
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कौन लोग इसका जाप कर सकते हैं?
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सभी आयु वर्ग के लोग
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जो श्रद्धा से पूजा करते हैं
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विशेष रूप से नए कार्य की शुरुआत से पहले या गणेश चतुर्थी पर
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