शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और धार्मिक पर्व है। यह आश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ धरती पर अमृत की वर्षा करता है। इसीलिए इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं, जिसका अर्थ है – "कौन जाग रहा है?"
इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं। माना जाता है कि यदि इस रात दूध व खीर को खुले आकाश में रखा जाए और फिर उसका सेवन किया जाए, तो यह शरीर को रोगमुक्त और मन को शांति प्रदान करता है।
शरद पूर्णिमा पर विशेष पूजा विधि
🪔 पूजा सामग्री
धूप, दीपक, अगरबत्ती
सफेद पुष्प
दूध, चावल, चीनी (खीर बनाने हेतु)
चांदी या तांबे का पात्र
तुलसी पत्ता
भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की मूर्ति/चित्र
🕉️ पूजा विधि
1. प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
2. घर को स्वच्छ कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।
3. दीप प्रज्वलित करें और लक्ष्मी-नारायण का ध्यान करें।
4. धूप-दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।
5. रात को दूध व खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखें।
6. मध्यरात्रि में खीर में तुलसी पत्ता डालकर परिवार सहित प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
शरद पूर्णिमा व्रत के लाभ
मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि
माँ लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक प्रगति
चंद्र दोष से मुक्ति
शरद पूर्णिमा और खीर का महत्व
इस दिन खीर का विशेष महत्व है। खीर को दूध व चावल से बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों से खीर में अमृततुल्य गुण आ जाते हैं, जिसे खाने से शरीर में नई ऊर्जा और सकारात्मकता आती है।
आधुनिक युग में शरद पूर्णिमा
आज के समय में लोग शरद पूर्णिमा को केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी मानते हैं। चंद्रमा की किरणों में Vitamin D, Calcium और अन्य औषधीय गुण होते हैं। यही कारण है कि इस दिन का चंद्र दर्शन और खीर का सेवन बेहद लाभकारी है
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