बैकुंठ चौदस 2025 (Vaikuntha Chaturdashi): तारीख़, महत्व, पूजा विधि, कथा
🕉️ बैकुंठ चौदस का महत्व (Significance)
वैकुण्ठ के द्वार खुलते हैं – पुराणों के अनुसार इस दिन वैकुण्ठ धाम के द्वार खुलते हैं।
विष्णु और शिव दोनों की पूजा – इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त पूजा होती है।
मोक्ष की प्राप्ति – इस दिन विधिपूर्वक व्रत-पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दान का महत्व – इस दिन दान-पुण्य करने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
आध्यात्मिक शुद्धि – यह दिन व्यक्ति की आत्मा को शुद्ध करने और आध्यात्मिक उन्नति देने वाला माना जाता है।
बैकुंठ चौदस 2025 की तारीख़ और समय
तारीख़: 4 नवम्बर 2025 (मंगलवार)
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 04 नवम्बर 2025, रात 02:05 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 05 नवम्बर 2025, सुबह 10:36 बजे
निशीथ पूजा मुहूर्त: रात 11:24 से 12:16 तक (मध्यरात्रि पूजा)
बैकुंठ चौदस की कथाएँ (Katha)
1. विष्णु-शिव कथा
कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु काशी में भगवान शिव की आराधना कर रहे थे। वे 1000 कमल फूल अर्पित करना चाहते थे। लेकिन एक कमल कम रह गया। विष्णु जी ने अपनी एक आँख (कमल जैसी) अर्पित कर दी। इससे शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने विष्णु जी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया।
2. वैकुण्ठ धाम की कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु अपने भक्तों के लिए बैकुंठ के द्वार खोलते हैं। इस दिन पूजा करने वाला भक्त मृत्यु के बाद सीधे वैकुण्ठ धाम जाता है।
3. यमराज की कथा
कुछ ग्रंथों में वर्णन है कि इस दिन यमराज ने कहा कि जो भक्त चतुर्दशी के दिन उपवास, स्नान और दीपदान करेगा, उसे नरक में नहीं जाना पड़ेगा।
पूजा विधि (Puja Vidhi)
क्रम विधि विवरण
1 स्नान सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदी या गंगाजल से स्नान करें।
2 संकल्प व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु-शिव को याद करें।
3 विष्णु पूजा भगवान विष्णु को कमल और तुलसी अर्पित करें।
4 शिव पूजा भगवान शिव को बेल पत्र और जल अर्पित करें।
5 दीपदान संध्या समय दीपक जलाकर नदी, तालाब या मंदिर में दान करें।
6 मंत्र जाप “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें।
7 दान-पुण्य अन्न, वस्त्र और दीपक दान करें।
8 भजन-कीर्तन विष्णु सहस्रनाम और हरि नाम संकीर्तन करें।
क्षेत्र अनुसार परंपराएँ
काशी (वाराणसी): यहाँ विशेष रूप से विष्णु और शिव का संयुक्त पूजन होता है। गंगा किनारे दीपदान की विशेष परंपरा है।
गुजरात: इसे “कालि चौदस” भी कहा जाता है और यहाँ तंत्र साधनाएँ की जाती हैं।
दक्षिण भारत: इसे वैकुण्ठ एकादशी जैसा महत्व दिया जाता है, और बड़े स्तर पर पूजा की जाती है।
महाराष्ट्र: यहाँ इसे रूप चौदस से भी जोड़ा जाता है, जहाँ महिलाएँ रूप-सौंदर्य के लिए स्नान व उबटन करती हैं।
शास्त्रों में वर्णन
पद्म पुराण और स्कंद पुराण में बैकुंठ चौदस का वर्णन मिलता है।
कहा गया है कि इस दिन विष्णु और शिव की संयुक्त पूजा करनी चाहिए।
विशेष रूप से इस दिन तुलसी-दल शिव को और बेल पत्र विष्णु को अर्पित करना चाहिए — जो सामान्य दिनों में वर्जित है।
बैकुंठ चौदस बनाम नरक चतुर्दशी
पर्व तारीख महत्व पूजा का केंद्र
नरक चतुर्दशी कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (दीपावली से एक दिन पहले) श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर वध तैल स्नान, दीपदान, यम पूजा
बैकुंठ चौदस (Vaikuntha Chaturdashi) कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विष्णु-शिव संयुक्त पूजा, वैकुण्ठ के द्वार खुलना विष्णु-शिव पूजा, दीपदान, उपवास
Q1: बैकुंठ चौदस 2025 कब है?
👉 4 नवम्बर 2025 को।
Q2: क्या बैकुंठ चौदस और नरक चतुर्दशी एक ही हैं?
👉 नहीं, बैकुंठ चौदस कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को और नरक चतुर्दशी कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है।
Q3: पूजा का मुख्य समय कब है?
👉 निशीथ काल यानी मध्यरात्रि पूजा का समय सर्वश्रेष्ठ है।
Q4: क्या उपवास अनिवार्य है?
👉 नहीं, यह वैकल्पिक है। श्रद्धा और क्षमता अनुसार किया जाता है।
निष्कर्ष
Baikunth Chaudas (Vaikuntha Chaturdashi) 2025 का पर्व 4 नवम्बर को मनाया जाएगा। यह दिन विष्णु-शिव की संयुक्त आराधना, मोक्ष की प्राप्ति और वैकुण्ठ धाम के द्वार खोलने का प्रतीक है। भक्त इस दिन उपवास, दीपदान, दान-पुण्य और भजन-कीर्तन करते हैं।
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