भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला का दिव्य वर्णन
भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला हिन्दू धर्म की सबसे अद्भुत और प्रेरणादायक लीलाओं में से एक है। यह कथा न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा हर परिस्थिति में करते हैं।
यह लीला द्वापर युग में घटित हुई थी जब श्रीकृष्ण ने मात्र सात वर्ष की आयु में अपने बाल्यकाल में एक ऐसा अद्भुत कार्य किया जिसने पूरी सृष्टि को चकित कर दिया।
गोवर्धन पूजा की पृष्ठभूमि
वृंदावन के निवासी हर वर्ष इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए इंद्र यज्ञ करते थे। उन्हें विश्वास था कि वर्षा और खेती इंद्र देव की कृपा से ही होती है।
एक दिन नंद बाबा और गाँव के सभी लोग यज्ञ की तैयारी कर रहे थे। तब बालक कृष्ण ने विनम्रतापूर्वक पूछा —
> “पिताजी, क्या इंद्र ही हमें अन्न, जल और जीवन देते हैं? क्या हमारे खेतों को पोषित करने वाला कोई और नहीं?”
नंद बाबा ने कहा — “बेटा, इंद्र देव वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है।”
तब कृष्ण मुस्कुराए और बोले —
> “लेकिन क्या वर्षा केवल इंद्र से होती है? हमारा जीवन तो गोवर्धन पर्वत से जुड़ा है, जो हमें जल, वनस्पति, चारा और शरण देता है। हमें इंद्र नहीं, गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।”
गोवर्धन पूजा की शुरुआत
कृष्ण की बात सुनकर गाँव के सभी लोग समत हो गए। उन्होंने उस वर्ष इंद्र यज्ञ रद्द कर दिया और गोवर्धन पर्वत की पूजा की।
सबने दूध, दही, मक्खन, अन्न, फल और मिठाइयाँ पर्वत पर अर्पित कीं। वृंदावन में भक्ति और आनंद का माहौल छा गया।
लोगों ने मिलकर कहा —
“जय गोवर्धन महाराज की! जय श्रीकृष्ण की!”
इंद्र का क्रोध और भयंकर वर्षा
जब इंद्र देव को यह ज्ञात हुआ कि वृंदावन के लोगों ने उनकी पूजा बंद कर दी है, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने सोचा —
“इन चरवाहों ने मेरी अवहेलना की है! मैं इन्हें अपने प्रकोप से सबक सिखाऊँगा।”
उन्होंने घोर वर्षा और तूफान भेज दिया। बादल गरजने लगे, बिजली चमकने लगी और तेज़ हवाओं के साथ वृंदावन डूबने लगा।
गायें, बच्चे और वृद्ध भय से काँप उठे। सभी लोग श्रीकृष्ण के पास भागे और बोले —
“हे गोपाल, हमारी रक्षा कीजिए!”
श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाना
तब श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले —
“डरो मत, जब गोवर्धन हमारी शरण हैं, तो हमें कुछ नहीं होगा।”
कृष्ण ने अपनी छोटी कनिष्ठिका (छोटी उंगली) पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया।
उन्होंने कहा —
“सभी लोग अपने पशुओं सहित इस पर्वत के नीचे आ जाओ।”
सात दिन और सात रातों तक कृष्ण ने पर्वत को अपनी उंगली पर थामे रखा। वर्षा और तूफान व्यर्थ हो गए। इंद्र का अभिमान चूर हो गया।
इंद्र का पश्चाताप और भगवान की महिमा
जब इंद्र को अपनी भूल का एहसास हुआ, तो वे अपने हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण के चरणों में आ गए और क्षमा माँगी।
उन्होंने कहा —
“हे गोविंद, मैं आपके रूप को नहीं पहचान पाया। आप ही सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं।”
कृष्ण ने उसे क्षमा कर दिया और कहा —
“इंद्र, अपने कर्तव्यों का पालन करो, लेकिन अभिमान मत करो। ईश्वर का कार्य सदा विनम्रता से होता है।”
गोवर्धन पूजा का महत्व
इस घटना के बाद हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा मनाई जाती है।
इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं।
यह पर्व प्रकृति, कृषि और गौसेवा के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।
गोवर्धन लीला से सीख
1. अभिमान का नाश: इंद्र का घमंड श्रीकृष्ण ने तोड़ा।
2. प्रकृति की पूजा: हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए।
3. भक्ति की शक्ति: जब श्रद्धा सच्ची हो, तो ईश्वर स्वयं रक्षा करते हैं।
गोवर्धन लीला का संदेश
गोवर्धन लीला हमें सिखाती है कि ईश्वर हमेशा अपने भक्तों के साथ हैं।
विनम्रता, भक्ति और सेवा भाव से जब हम जीवन जीते हैं, तो संकट कितना भी बड़ा क्यों न हो, प्रभु हमारी रक्षा करते हैं।
0 Comments