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Bhakti Ras Pravah-भक्ति रस प्रवाह

हजारों साल का गौरवशाली माथुर चतुर्वेद समाज

     हजारों साल का गौरवशाली माथुर चतुर्वेद समाज 

Mathur Chaturvedi Samaj
Mathur Chaturvedi Samaj


आज जब भी समाज में जानकारी की बात होती है तो कहा जाता है कि प्रत्येक चतुर्वेदी को अपने गोत्र , प्रवर (अल्ल), ऋषि,वेद , शाखा तथा कुलदेवी की जानकारी होना चाहिये लेकिन अधिकांश बांधव इस महत्वपूर्ण जानकारी से अनभिज्ञ हैं इस सम्बन्ध में कुछ जानकारियां आपकी मदद हेतु प्रस्तुत हैं जिनसे आप अपने बारे में जान सकते हैं ।

        माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों में सात गोत्र हैं। प्रत्येक गोत्र किसी ऋषि के नाम पर है। संभवतः एक गोत्र के लोग उस ऋषि की संतान हैं, जिसके नाम पर वह गोत्र है। प्रत्येक गोत्र के साथ ‘प्रवर’ (अल्ल) भी है, जिसमें उन विशिष्ट ऋषियों के नाम हैं जो उस गोत्र में उल्लेखनीय महत्त्व के हुए। यद्यपि प्रत्येक चतुर्वेदी चारों वेदों का अध्ययन करता था, तथापि वह अन्य ब्राह्मणों की तरह एक वेद का विशेष अध्ययन करता था। वह उसका ‘वेद’ कहलाता था। वेद में अनेक शाखाएँ होती हैं जिनका वह विशेषज्ञ होता था। अतएव वेद के साथ उस शाखा का भी उल्लेख किया जाता है। प्रत्येक गोत्र की कुलदेवी होती थी।

                                                                  Bhakti Ras Pravah
          माथुरों के सात गोत्र हैं: दक्ष , वसिष्ठ, धौम्य सौश्रवस, कुत्स, भार्गव,  और भारद्वाज
       इनके प्रवर(अल्ल), शाखा और कुल-देवियाँ इस प्रकार हैं-
क्र. -गोत्र - ऋषि - वेद - शाखा -कुलदेवी
1- दक्ष- आत्रेय- ऋग्वेद- आश्वालायनी- महाविद्या
2- वसिष्ठ -वसिष्ठ-ऋग्वेद- आश्वालायनी - महाविद्या           
3- धौम्य -कश्यप -ऋग्वेद-आश्वालायनी- महाविद्या             
4- सौश्रवस-विश्वामित्र-ऋग्वेद -आश्वालायनी -महाविद्या
5- कुत्स - अंगिरा- ऋग्वेद -आश्वालायनी - महाविध्या             
6- भार्गव - भार्गव - ऋग्वेद -आश्वालायनी -महाविद्या           
7 - भारद्वाज -आंगिरस-सामवेद-राडायनी- चर्चिका     

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           इनके अतिरिक्त ये सात गोत्र वाले चौंसठ उपनामों या ‘अल्लों’ में विभक्त है.माथुरों की चौंसठ अल्लें या उपनाम ये हैं-
1- (दक्ष गोत्र में) ककोर, पैंचरे, पुरवेऊ, दक्ष ;
2- (वसिष्ठ गोत्र में) निनावली, काबो, बहिया, जोनमाने, डाहरू, डटोलिया, डुंडवार, पैठवाल ;
3- (धौम्य गोत्र  में) लापसे, भरतवार, तिलभने, मोरे, घरवारी, चंद्रपेखी, जोजले, सुकल, ब्रह्मपुरिया, सोती, ;
4-(श्रोत्रिय सौश्रवस गोत्र में) पुरोहित, छिरोरा, घोरमई, मिश्र चकेरी, बुदौआ, तोयजाने, चंद्रसे, चंदपुरिया, बैसांदर, सुभावली
5-(कुत्स गोत्र में) मेहारी, खलहरे, अरेठिया या संतैरे, शांडिल्य
6-(भार्गव गोत्र में) दीक्षित-दरर, गेंदवार, गुगौलिया, गोंहजे, कनेरे, तर्र, घेहरिया सकना, चतुरमुर्र, आमरे, मकनियाँ
7-(भारद्वाज गोत्र में) पांडे, पाठक रावत, कारेनाग तिवारी , नसवारे, बीसा तिवारी, चौपोली तिवारी, भामले, अजमियाँ, कोहरे, दिआचाट तिवारी, सड्ड भेंसेरे, गुनार, सिकरोरी, पिलहोली ।
        अनुमान है कि ये अल्लें दसवीं शती के लगभग बनीं और तब से प्रचलित हुईं।

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