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Bhakti Ras Pravah-भक्ति रस प्रवाह

भारतीय संस्कृति के अनुसार सोने अथवा उठने का सही समय क्या है

भारतीय संस्कृति  के अनुसार सोने अथवा उठने  का सही समय क्या है

Sone Ka Sahi samay Kya hai
Sone Ka Sahi Time Kya Hai


  बंधुवर निद्रा  मानव जीवन का आवश्यक अंग है बिना निंद्रा ग्रहण किए हमारा शरीर कार्य करने के लिए सक्षम नहीं होता सोने के बाद जब हम उठते हैं तो हमें ताजगी की प्राप्त होती है और हमारा शरीर पुनःकार्य करने की शक्ति को प्राप्त करके और हम हमारे  जीवन में अपने क्रियाकलाप को  यथा वृत्ति करने में सार्थक होते हैं 

परंतु एक प्रश्न है कि उठने का समय क्या  निंद्रा का समय क्या, नींद कितनी देर कि. आज के समय में  इन स्थिति में परिवर्तन है क्योंकि  नींद के विषय में कहा है जितनी देर  मैं शरीर की थकान निकल जाए और हम  पुनःश्रम के लिए तत्पर हो जाए हमारे शरीर को  स्फूर्ति की प्राप्ति हो जाए  उतने समय तक सोना चाहिए और बिना थकान उतरे जबरदस्ती नहीं उठना चाहिए जिससे शरीर को हानि होती है

सोने और उठने का सही समय क्या  



रात्रि में प्रथम पहर बीतने के बाद  निंद्रा ग्रहण कर लेना और सूर्य अस्त होने के 3 घंटे बाद सो जाना यह शरीर के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है हमें अच्छी  निंद्रा आने के लिए सहायक है , सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के लिए 6 घंटे की नींद पर्याप्त होती है और  पुनःकार्य करने की शक्ति का संचार हो जाता है ,और उठने का समय बताया गया है  सूर्य उदय से एक पहर  पूर्व अपनी निंदा का त्याग करें एक पहर का मतलब 3 घंटे अर्थात सूर्य उदय होने से 3 घंटे पहले उठ जाना चाहिए , उठने के विषय में एक बात है जिस व्यक्ति को ध्यान इत्यादि करना है भगवान का पूजन,ध्यान, जप करना है उनके लिए सूर्य उदय से 3 घंटे पहले उठना ठीक रहता है उसका कारण है , उस समय पशु पक्षी सभी  निंद्रा के आगोश में होते हैं पशु पक्षी सभी  निंद्रा में होते हैं तो उस समय ध्यान की सबसे अच्छी स्थिति है , क्योंकि अगर आप भगवान का पूजन, जप,  ध्यान करने बैठे  और उस समय कोई ध्वनि हो तो ध्वनि को ग्रहण करना कान की  श्रुत इंद्री का कार्य है उस ध्वनि को ग्रहण करना , आप ध्वनि को ग्रहण करना चाहते हैं अथवा  नहीं करना चाहे  यदि वह ध्वनि  कान की ग्रहण सीमा में अंदर होती है तो आपका कान उसे ग्रहण करेगा ही करेगा जब वह ग्रहण करेगा तो ध्वनि मस्तिक पर जाएगी मस्तिक पर आघात करेगी मस्तिक  पर आघात करने से उस ध्यान  का सूत्र  टूटेगा,  सामान्य सबसे पहले उठने वाला मुर्गा है वह मुर्गा भी सूर्य उदय से 1 घंटे पहले बाघ देता है अब तो मुर्गा शहरी आबादी में है ही नहीं , उसके उपरांत   सबसे  पहले उठने वाला  पक्षियों में कौवा आता हैं कौआ भी सूर्य उदय होने से एक घड़ी पूर्व 24 मिनट पहले आकर के कांव-कांव करता है इसलिए कहा है यदि भगवान का ध्यान करने की स्थिति है तो सूर्य उदय से 3 घंटे पहले उठे और स्नान आदि करके ध्यान कर जब तक दुनिया का क्रियाकलाप चालू हो  उस समय तक आप अपनी सभ्यता की स्थिति में ध्यान के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें,

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 सामान्य जन के विषय में वैज्ञानिक तथ्य है यदि हम सूर्य उदय के 1 घंटे  पूर्व के अंदर निंदा का त्याग करते हैं तो हमारे शरीर में  निस्फूर्ति रहती है साथ ही साथ अगर हम जीवन के व्यवहार से देखें तो सूर्य उदय होने के 1 घंटे पूर्व उठते  हैं उस समय  उठकर के धारीरिक क्रिया से निवृत्त हो जाते हैं जब तक दिन निकलता है तब तक हम सांसारिक कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं हमारे पास हमारे सांस्कारिक  कार्यों का निष्पादन करने के लिए अधिक समय की प्राप्ति होती है धार्मिक दृष्टि से सूर्य उदय होने से एक पहर पूर्व अर्थात 3 घंटे पहले उठना ध्यान इत्यादिक  दृष्टि से लाभदायक है वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य उदय होने से 1 घंटे पूर्व  शांत चित् होकर के प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन करते हुए  अपनी नित्य क्रिया से निर्वत होकर के पर्मात्मा  का ध्यान करें और सूर्य अर्घ  देने का हमारे यहां भारतीय जीवन में नित्य कर्म कहा गया है जब सूर्य निकल रहा हो उस समय से पहले हम अपने स्नानादि से निवृत्त होकर के सूर्य को अर्घ देने के लिए तैयार हो और उगते हुए सूर्य को अर्घ देने पर मनुष्य को विशेष सूर्य की किरणों से जो फल की प्राप्ति होती है उसे शरीर में प्रवाहित होने वाली  उन किरणों के  द्वारा उसे सांस्कारिक  और वैज्ञानिक लाभ होते हैं जिससे मनुष्य पुस्ट  होता है उस सूर्य के प्रभाव को ग्रहण करके स्वास्थ्य का जो पान कर सके इसके लिए भी सूर्य उदय के 1 घंटे पूर्व उठना वह एक  लाभदायक स्थिति है मेरे विचार से सूर्य उदय होने के 1 घंटे पहले निद्रा का त्याग करके सूर्योदय होने तक स्नान इत्यादि क्रिया से निवृत्त होकर के परमात्मा के भजन में लीन होकर कुछ समय तक अपनी मन चित्त इंद्री की वृत्ति उस परमपिता को प्रदान करें तो हमारे जीवन में कार्य  करने के लिए शारीरिक  श्रेष्ठता भौतिक सुखों की प्राप्ति और अंतचित की वृद्धि शुद्ध होकर के पुनः  फल की प्राप्ति होती है
        




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