श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र के पाठ का हिंदी में अर्थ एवं फायदे
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श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र |
श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र के पाठ का हिंदी में अर्थ -
Shri Vindhyavasini Stotr lyrics with meaning in hindi.
विंध्यवासिनी स्तोत्र / Vindhayavasini Stotra
विनियोगः
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वालत्-पावक ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यासः
शिरसि ज्वालत्-पावक-ऋषये नमः।
मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः,
हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः,
सर्वाङ्गे मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ,
शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगाय नमः।।
कर-न्यासः
ॐ ह्रां क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं क्लूं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ह्रैं क्लैं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रौं क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रः क्लः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि-न्यासः
ॐ ह्रां क्लां हृदयाय नमः।
ॐ ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रूं क्लूं शिखायै वषट्।
ॐ ह्रैं क्लैं कवचाय हुम्।
ॐ ह्रौं क्लौं नेत्र-त्रयाय वौषट्।
ॐ ह्रः क्लः अस्त्राय फट्।
ध्यानः
रक्तागीं शव-वाहिनीं त्रि-शिरसीं रौद्रां महा-भैरवीम्,
धूम्राक्षीं भय-नाशिनीं घन-निभां नीलालकाऽलंकृताम्।
खड्ग-शूल-धरीं महा-भय-रिपुध्वंशीं कृशांगीं महा-
दीर्घागीं त्रि-जटीं महाऽनिल-निभां ध्यायेत् पिनाकीं शिवाम्।।
मन्त्रः
“ॐ ह्रीं क्लीं पुण्य-वती-महा-माये सर्व-दुष्ट-वैरि-कुलं निर्दलय क्रोध-मुखि, महा-भयास्मि, स्तम्भं कुरु विक्रौं स्वाहा।।
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