आषाढ़ पूर्णिमा व्रत कथा , व्रत की विधि, पूजा और भगवान विष्णु की कृपा पाने का चमत्कारी मंत्र
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🌕 आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत: आध्यात्मिक शक्ति और पुण्य प्राप्ति का दिवस
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। यह दिन धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन व्रत, पूजा, कथा पाठ और दान करने से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है।
व्रत करने वाले व्यक्ति को विशेष फल मिलता है और पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
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📖 आषाढ़ पूर्णिमा व्रत कथा (Ashadh Purnima Vrat Katha)
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। वह अत्यंत धर्मनिष्ठ, ईमानदार और सत्यवादी था। उसका जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन वह हर पूर्णिमा को व्रत रखता और भगवान विष्णु की सच्ची भक्ति करता था।
ब्राह्मण के घर में न तो पर्याप्त भोजन था, न वस्त्र और न धन, लेकिन उसका विश्वास भगवान विष्णु में अटूट था। वह कहता — "भगवान विष्णु सब देख रहे हैं, एक दिन मेरी भी सुनवाई होगी।"
🌕 एक बार की बात...
आषाढ़ मास की पूर्णिमा आई। ब्राह्मण बहुत थका हुआ था, और उसी रात वह उपवास करने के स्थान पर सो गया। व्रत करना भूल गया। अगले दिन, ब्राह्मण को स्वप्न में भगवान विष्णु ने दर्शन दिए।
भगवान बोले, “हे ब्राह्मण! तुमने जीवन भर मेरी उपासना की, पर आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत जो समस्त पुण्य प्रदान करता है, उसे भूल गए। यह दिन ब्रह्मा से लेकर ऋषि-मुनियों तक के लिए भी पूजनीय है।"
ब्राह्मण ने भगवान से क्षमा याचना की और संकल्प लिया कि अगली आषाढ़ पूर्णिमा से वह विधिपूर्वक व्रत करेगा। भगवान ने कहा, “जो भक्त इस दिन व्रत करता है, कथा सुनता है और दान-पुण्य करता है, उसके जीवन से सारे संकट दूर हो जाते हैं।"
🪔 अगले वर्ष...
ब्राह्मण ने वर्ष भर की प्रतीक्षा की और अगली आषाढ़ पूर्णिमा पर प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लिया। उसने भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीप जलाया, तुलसी और पंचामृत से पूजा की, और फिर श्रद्धापूर्वक आषाढ़ पूर्णिमा की कथा सुनी।
उस दिन उसने जितना बन पड़ा, गरीबों को दान दिया — वस्त्र, अन्न, तिल और दक्षिणा। जैसे ही कथा समाप्त हुई, उसके घर का वातावरण बदल गया। उस रात्रि भगवान ने फिर स्वप्न में आकर आशीर्वाद दिया: “अब तेरे जीवन से दुखों का अंत हो गया है।”
अगले ही दिन एक राजा अपने राज्य के लिए योग्य पुजारी की तलाश में आया और ब्राह्मण को नियुक्त किया गया। ब्राह्मण के दिन फिर गए — घर में धन, सम्मान और शांति का वास हो गया।
🙏 इस कथा का संदेश:
जो व्यक्ति आषाढ़ पूर्णिमा पर व्रत करता है, कथा सुनता है, और निस्वार्थ भाव से दान देता है — उसके जीवन में ईश्वर की कृपा सदैव बनी रहती है।
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🧘♀️ व्रत विधि (Vrat Vidhi)
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प्रातः काल स्नान कर पवित्र भाव से संकल्प लें।
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व्रत रखने वाले को दिन भर उपवास रखना चाहिए।
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शाम के समय भगवान विष्णु या सत्यनारायण की पूजा करें।
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घर में कथा का आयोजन करें और प्रसाद वितरित करें।
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जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न और दक्षिणा दान करें।
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🌟 आषाढ़ पूर्णिमा व्रत के लाभ
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पापों का नाश होता है।
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मनोकामना पूर्ण होती है।
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घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
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ग्रह दोष और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
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जीवन में संतुलन और मानसिक शांति मिलती है।
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आषाढ़ पूर्णिमा व्रत के लिए चमत्कारी मंत्रों का संयुक्त जाप
मंत्र जाप विधि:
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पहले 36 बार ॐ नमो नारायणाय जाप करें।
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फिर 36 बार ॐ नमः शिवाय जाप करें।
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अंत में 36 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय जाप करें।
इस तरह कुल 108 बार जाप पूरा होता है जो बेहद फलदायी माना जाता है।
📿 दान का महत्व
इस दिन ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान देने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। यह जीवन के सभी दोषों को शांत करने में सहायक होता है।
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🧡 निष्कर्ष
आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत एक आध्यात्मिक साधना है, जिससे न केवल हमारे पाप कटते हैं बल्कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। भगवान विष्णु की पूजा और कथा से हमारा मन शुद्ध होता है और हम जीवन के सही मार्ग पर चलने लगते हैं।
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