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Bhakti Ras Pravah-भक्ति रस प्रवाह

श्री सूक्तम का पूरा पाठ और अर्थ — धन-वैभव और सुख की गारंटी!

 🔱 श्री सूक्तम् सम्पूर्ण पाठ (संस्कृत में)

श्री सूक्तम का पाठ और अर्थ - लक्ष्मी माता का वैदिक मंत्र, धन और समृद्धि के लिए
श्री सूक्तम का पूरा पाठ और अर्थ


📖 श्री सूक्तम् क्या है?

श्री सूक्तम् एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली वैदिक स्तोत्र है, जो माँ लक्ष्मी को समर्पित है। यह पाठ ऋग्वेद से लिया गया है और धन, वैभव, समृद्धि, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इसका पाठ अत्यंत फलदायक माना गया है।


🪔 Shri Suktam Full Path (Sanskrit with Transliteration)

1. ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।

   चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

अर्थ: हे अग्निदेव! वह लक्ष्मी जो सोने/चांदी की माला पहने, चंद्र जैसी शीतल और हिरण जैसी कोमल है—उसे मेरे यहाँ लाओ।


2. तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।

   यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम्॥

अर्थ: हे अग्निदेव! वह अक्षय लक्ष्मी जो सुनहरा धान्य, गाय, दास-घोड़े और अधिक दे—उसका आह्वान कर।


3. अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।

   श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्॥

अर्थ: वह देवी जो घोड़ों की अवाज सुनती है और हाथीयों की मुखरता से जाग जाती है—ऐसी श्री देवी का मैं आह्वान करता हूँ।


4. कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं...

   पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्॥

अर्थ: वह श्री देवी जो सुनहरे तेज से झिलमिलाती, मुस्कानित, कमल पर विराजित और संतुष्ट है—उसकी कृपा दें।


5. चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्...

   तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वं वृणे॥

अर्थ: देवपूजित, चंद्र के समान चमकने वाली देवी का शरण ले रहा हूँ। मेरी दरिद्रता दूर करें।


6. आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः...

   तस्य फलानि तपसा नुदंतु मायांतरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥

अर्थ: हे देवी! जैसे तप से बिल्ववृक्ष उत्पन्न होता है, वैसे आपकी शक्ति आंतरिक-अलक्ष्मी और बाहरी बाधाओं को दूर करे।

7. उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह...
   प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥
अर्थ: हे देवी! देव सखा एवं कीर्ति की कृपा से मुझे राष्ट्र में यश और प्रतिष्ठा दें।

8. क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्...
   अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात्॥
अर्थ: हे देवी! मेरे घर से गरीबी और अभाव का अंत करें।

9. गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीं...
   ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥
अर्थ: मैं ऐसी श्री देवी का आह्वान करता हूँ जो खुशबू जैसी सुगंधित, समृद्ध और सभी प्राणियों की स्त्रीप्रधान है।

10. मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि...
    पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥
अर्थ: मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरी मनोकामनाएँ, सत्य वाणी, अन्न-रूप की संपदा और कीर्ति बनी रहे।

11. कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम...
    श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्॥
अर्थ: हे देवी! कर्दम ऋषि की पत्नी—माँ पद्ममालिनी लक्ष्मी—मेरे कुल में वास करें।

12. आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे...
    नि च देवीं मातरं श्रीं वासय मे कुले॥
अर्थ: हे देवी! पानी से भीगी चिक्लीत शीतल लक्ष्मी, मेरे घर में वास करें

13. आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्...
    चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
अर्थ: हे अग्निदेव! वह लक्ष्मी जो पुष्कर से मिलती-जुलती पुष्ट और कमलधारी है—आओ।

14. आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्...
    सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
अर्थ: हे अग्निदेव! शीतल, सुवर्णमाला धारण करने वाली, सूर्य जैसी तेजस्वी लक्ष्मी को आओ।

15. तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्...
    यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्याश्वान्विन्देयं पुरुषानहम्॥
अर्थ: हे अग्निदेव! वह अक्षय लक्ष्मी मेरी हो, जिससे मुझे स्वर्ण, गाय, घोड़ाः, दासी-नौकर मिलें।

16. यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्...
    सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत्॥
अर्थ: जो व्यक्ति शुद्ध हो, प्रतिदिन ये 15 ऋचाएँ गाय द्वारा यज्ञ करके जपता है—उसे लक्ष्मी की कृपा मिलती है।

17. पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे...
    त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम्॥
अर्थ: हे पद्ममुखी लक्ष्मी! आपका आशीर्वाद चाहिए जिससे मुझे परम सुख प्राप्त हो।

18. अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने...
    धनं मे जुषतां देवी सर्वकामांश्च देहि मे॥
अर्थ: हे देवी! घोड़ा, गाय और धन देने वाली—मुझे सभी शोभा और इच्छाएँ पूर्ण करने वाला धन दें।

19. पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम्...
    प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु माम्॥
अर्थ: देवी! पुत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, रथ, और जीवन की दीर्घायु दें।

20. धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः...
    धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते॥
अर्थ: अग्नि, वायु, सूर्य, वसुः, इंद्र, बृहस्पति, वरुण—ये सब मेरे धनदाता हों।

21. वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा...
    सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥
अर्थ: हे वैनतेय (गरुड़), जिनके माध्यम से अमृत से धन आता है—मुझे धन प्रदान करें।

22. न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः...
    भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा॥
अर्थ: श्री सूक्त का जप करनेवाले भक्तों में क्रोध, द्वेष, लोभ और बुरी सोच नहीं होती।

23. वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः...
    रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि॥
अर्थ: हे देवी! आकाश में बिजली की तरह अपनी कृपा बरसाओ, और सभी द्वेषों को नष्ट कर दो।

24. पद्मप्रिये पद्मिनी पद्महस्ते पद्मालये...
    विश्वप्रिये विष्णु मनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥
अर्थ: हे कमलप्रिय लक्ष्मी! विष्णु को प्रिय, सृष्टि की प्यारी—आपके चरण मेरे हृदय में स्थिर हों

25. या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी...
    गम्भीरा वर्तनाभिः स्तनभर नमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया॥
अर्थ: जो कमल पर विराजित, विशाल कमलासन की और शुभ्र वस्त्र की देवी है—वह मेरे प्रति कृपालु हो।

26. लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता...
    नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता॥
अर्थ: दिव्य हाथी-अम्बर-रत्नों से स्नात—कमलहस्त लक्ष्मी मेरे घर में वास करें, समस्त मङ्गल लिए।

27. लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राजतनयां श्रीरंगधामेश्वरीम्...
    दासीभूतसमस्त देववनितां लोकैकदीपांकुराम्॥
अर्थ: वह देवी जो क्षीरसागर में उत्पन्न हुईं—विष्णुपत्नी, रंगधाम की श्रेष्ठा। सृष्टि की सभी देवीयाएँ आपकी उपासिका हैं।

28. श्रीन्मन्दकटाक्षलब्ध विभव ब्रह्मेन्द्रगंगाधराम्...
    त्वां त्रैलोक्यकुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम्॥
अर्थ: आपका एक दृष्टि मात्र गुणदाई होता है—विष्णु, ब्रह्मा, इंद्र आदि को प्राप्त—is त्रैलोक्य की परिवारिणी का मैं अभिनंदन करता हूँ।

29. सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीसरस्वती...
    श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च प्रसन्ना मम सर्वदा॥
अर्थ: हे देवी! आप सिद्ध, मोक्ष, जय, सरस्वती, वर लक्ष्मी—सदा मुझ पर प्रसन्न रहें।

30. वरांकुशौ पाशमभीतिमुद्रां करैर्वहन्तीं कमलासनस्थाम्...
    बालार्ककोटिप्रिभां त्रिणेत्रां भजेहमाद्यां जगदीश्वरीं त्वाम्॥
अर्थ: हे जगदीश्वरी! आप वरद, अंकुश, पाश, भीति मुद्रा-धारिणी, कमलासनस्थ—बालार्क के समान तेज आपकी त्रिनेत्रा मेरा आह्वान स्वीकार करें।

31. सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके...
    शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ: सभी मंगलों की मालिक, त्र्यम्बक, नारायणी—मैं आपकी शरण में आता हूँ।

32. सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे...
    भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम्॥
अर्थ: हे कमलाश्रयी! आपके हाथ, गंधमालाएं, सुन्दरता—मैं आपकी भक्ति करता हूँ, मुझे कृपा करें।

33. विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्...
    विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम्॥
अर्थ: मैं क्षमा की देवी, माधवी (माधव प्रिय), विष्णु की सखी—अच्युत प्रिय—आपको प्रणाम करता हूँ।

34. महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि...
    तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥
अर्थ: हम महान लक्ष्मी का ध्यान करें जो विष्णु की पत्नी है—उसकी प्रेरणा मिले।

35. श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते...
    धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः॥
अर्थ: वह हमें वैभव, आयु, स्वास्थ्य, जल, धन, धान्य, पशु, पुत्र, और सौ वर्षों तक दीर्घायु प्रदान करें।

36. ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः...
    भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥
अर्थ: सभी ऋण, रोग, गरीबी, पापनाश, मृत्यु, भय, दुःख, मानसिक कष्ट—सब मेरे जीवन से दूर हों।

37. य एवं वेद ॐ महादेव्यै च विष्णुपत्नीं च धीमहि...
    तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
अर्थ: जो वाणी मैं जानता हूँ—“ॐ महादेव्यै च विद्महे…”—उसका जप करते हुए “तन्नो लक्ष्मीः” की प्रेरणा प्राप्त हो। ॐ शांति।

🌟 श्री सूक्तम् के लाभ (Benefits of Shri Suktam):

  1. धन और समृद्धि की प्राप्ति

  2. परिवार में सुख-शांति और संतुलन

  3. मानसिक शुद्धता और ध्यान में वृद्धि

  4. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और वैभव

  5. व्यापार में वृद्धि और आर्थिक बाधाओं का नाश

  6. दरिद्रता, गरीबी और दुर्भाग्य का अंत

  7. माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है


📿 श्री सूक्तम् का पाठ कब करें?

  • प्रतिदिन सुबह या शुक्रवार को

  • दीपावली, धनतेरस, और लक्ष्मी पूजन पर

  • किसी भी शुभ कार्य या नए व्यापार आरंभ से पहले


🎧 कैसे करें पाठ? (Tips):

  • स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें

  • शांत स्थान पर बैठें

  • दीपक जलाएं, माँ लक्ष्मी का ध्यान करें

  • पाठ पूरे श्रद्धा और भावना से करें

  • अंत में माँ लक्ष्मी से धन-सुख की प्रार्थना करें


📌 Conclusion (निष्कर्ष):

श्री सूक्तम् न केवल एक वैदिक स्तोत्र है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक ऊर्जा है, जो जीवन में सौभाग्य, धन और आंतरिक संतुलन लाने की शक्ति रखता है। इसे श्रद्धा और नियमितता से करने पर माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।


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