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मकर संक्रांति 2026 – महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथा, खिचड़ी पर्व और सूर्य उपासना का महापर्व

 मकर संक्रांति 2026: सूर्य उपासना, दान-पुण्य और भारतीय संस्कृति का दिव्य महोत्सव

 
मकर संक्रांति सूर्य पूजा, तिल-गुड़ और पतंग उत्सव – भारतीय संस्कृति का पर्व


मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक ऐसा प्रमुख त्योहार है जो सूर्य की उपासना, दान-पुण्य, ऋतु परिवर्तन, सकारात्मक ऊर्जा और सांस्कृतिक उल्लास का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हर वर्ष तब मनाया जाता है जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इसी कारण इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। यह दिन उत्तरायण की शुरुआत का भी द्योतक है, जिसे देवताओं का दिन माना जाता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में यह पर्व खिचड़ी, पोंगल, उत्तरायण, माघी, तिल संक्रांति जैसे नामों से प्रसिद्ध है।


पौराणिक मान्यता और धार्मिक कथा

शास्त्रों में वर्णित है कि इसी दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए सूर्य का मकर राशि में प्रवेश पिता-पुत्र के मिलन, संबंधों में मधुरता और मनमुटाव समाप्ति का प्रतीक माना गया है।


महाभारत काल में भी इस दिन का विशेष महत्व मिलता है। भीष्म पितामह ने देह त्याग के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी, क्योंकि यह काल आत्मा की मोक्ष यात्रा के लिए सर्वोत्तम माना गया है।


गंगा अवतरण से जुड़ी एक मान्यता यह भी कहती है कि इसी दिन मां गंगा भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में मिली थीं, इसलिए इसे गंगा सागर संक्रांति भी कहा जाता है।

सूर्य उपासना का आध्यात्मिक महत्व


मकर संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ऊर्जा, चेतना, स्वास्थ्य, आत्मविश्वास, मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरण से भी जुड़ा हुआ है।

सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता माना गया है। इस दिन की गई सूर्य साधना से:

शरीर में विटामिन-D, रोग प्रतिरोधक क्षमता और सकारात्मक हार्मोन का संतुलन बढ़ता है

मन में स्पष्टता, प्रेरणा और उत्साह आता है

जीवन में तरक्की, सम्मान और सौभाग्य का प्रवेश होता है
दान-पुण्य और खिचड़ी पर्व की परंपरा

इस दिन दान का महत्व सर्वाधिक माना गया है। कहा जाता है:
“मकर संक्रांति पर दिया गया दान, सौ गुना फल लौटाता है।”

विशेष रूप से:

तिल, गुड़, चावल, दाल, ऊनी वस्त्र, घी, कंबल, वस्त्र, अनाज
गाय, मंदिर, गरीब, संत और जरूरतमंदों को दिया दान
पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान
उत्तर भारत में इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है, क्योंकि गोरखपुर, पूर्वांचल, बिहार और नेपाल तक इस दिन खिचड़ी दान और खिचड़ी प्रसाद की परंपरा प्रमुख रूप से निभाई जाती है। लोग उड़द दाल, चावल, घी, नमक, हल्दी और सब्जियों से बनी खिचड़ी को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं।

तिल-गुड़ की मिठास और सामाजिक संदेश
मकर संक्रांति का एक सुंदर संदेश है:
“तिल-गुड़ खाओ, और मीठा-मीठा बोलो।”


तिल और गुड़ के पीछे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों कारण हैं:

तिल शरीर को गर्मी, ऊर्जा और पोषण देता है
गुड़ रक्त को शुद्ध करता है और पाचन मजबूत करता है
संबंधों में मधुरता बनाए रखने का संदेश देता है


पतंग उड़ाने का आध्यात्मिक अर्थ भी है — ऊंची उड़ान, स्वतंत्रता, महत्वाकांक्षा और जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा।



देश-भर में मकर संक्रांति का स्वरूप


क्षेत्र - नाम -विशेषता

उत्तर भारत -खिचड़ी / तिल संक्रांति,खिचड़ी दान, तिल-गुड़

तमिलनाडु -पोंगल

सूर्य को भोग, पोंगल प्रसाद

गुजरात - उत्तरायण, पतंग उत्सव

पंजाब - माघी, लोहड़ी के बाद स्नान

बंगाल -पौष संक्रांति, तिल-पिठा


यात्रा और प्रमुख स्थल

मकर संक्रांति के अवसर पर कुछ प्रमुख स्थान जहाँ भक्त जाते हैं:

गंगा सागर (पश्चिम बंगाल)

प्रयागराज संगम स्नान

हरिद्वार, ऋषिकेश

गोरखपुर (खिचड़ी मेला) 


निष्कर्ष

मकर संक्रांति केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय आस्था, प्रकृति विज्ञान, संस्कृति, पारिवारिक प्रेम, सामाजिक एकता और आध्यात्मिक उन्नति का संगम है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जैसे सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी अंधकार से प्रकाश, आलस्य से ऊर्जा और निराशा से आशा की ओर बढ़ना चाहिए।





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