क्यों सारे त्यौहार अब दो दिन होने लगे हैं
इस बार भी जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाएगी ऐसा क्यों ?
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Vrat Evam Tyohaar |
जय श्री कृष्णा , वर्तमान समय में धार्मिक आस्था युक्त मनुष्य के लिए सबसे बड़ी भ्रम की स्थिति व्रत और त्योहार का 2 दिन होना है । और इसमें सामान्य मनुष्य को अब वर्तमान समय में व्रत और त्योहार के निर्धारक तत्व की सामान्य जानकारी नहीं है ,और ना ही उनकी समझ में आता है कि व्रत और त्योहार 2 दिन क्यों मनाए जाते हैं। बंधुओं इस विषय में सबसे पहले जो ध्यान करने की बात है, यह है की यदि व्रत और त्योहार 2 दिन मनाए जाते हैं तो उससे सबसे ज्यादा हानि किसको होती है, व्रत और त्योहार मनाने वाले को अथवा धर्म को ,इसका निश्चित जवाब धर्म है, तो वास्तविक रूप में सही क्या है हम व्रत आज करें अथवा कल करें।
इस विषय में जैसा मेरा धर्म के विषय में ज्ञान है आपको बताऊं कि पूरे भारत की 130 करोड़ व्यक्तियों में से यदि उंगलियों में से गिने जाने वाले कुछ चंद व्यक्ति अपने अहंकार को एक तरफ रख दें और धर्म शास्त्र कि आज्ञा का पालन माने तो इस बात को समाप्त होने के लिए देर नहीं लगेगी।
इसके दो होने के कारण कुछ तो व्रत के निर्धारक तत्व हैं , यदि व्रत की तिथि दो दिन हो जैसा की अब जन्माष्टमी के दिन देखने को मिलेगा , तो इसके अनुसार मंगलवार को व्रत करने वाले को 48 घंटे तक निआहार ,निर्जल रहना पड़ेगा अगर निशीथ व्यापिनी अष्टमी के दिन अगर कोई जन्माष्टमी का व्रत करता है तो निश्चित रूप से शास्त्र की मर्यादा के अनुसार उसे 48 घंटे तक सत्तमी के मध्य से लेकर पूर्ण नवमी लग जाने के उपरांत ब्राह्मण को भोजन कराने तक उसे निर्जल रहना पड़ेगा। तब उसे व्रत के पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।
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दूसरा मुख्य कारण पंचांगो की भिन्नता है, एक पंचांग ग्रह लागवीय है जिसकी सारणी 500 साल तक बनाई गई हैं और उन सारीडीओं में यथा समय संसोधन न होने के कारण उनकी गड़ना में भिन्नता प्राप्त होती है , दूसरा सन् 1920 के उपरांत द्रक सिद्ध पद्धति के अनुसार पंचांग आरंभ हुआ उस पद्धति के द्रक अनुसार जो ग्रह गड़ना प्राप्त होती है , वह आसमान में दृष्टिगत होती है उसे दृक सिद्धांत कहते हैं , गृह लाघवीय पंचांग वर्तमान गणितीय गणना की द्रष्टि से अशुद्ध सिद्ध होते है ,भारत सरकार की ओर से भी व्रत त्यौहार आदि के लिए द्रक सिद्ध पंचांग की ही मान्यता है , फिर भी कुछ प्रकाशक अपने अहंकार एवं व्यापारिक मजबूरी के कारन गृह लाघवीय पद्दति के पंचांगों का प्रकाशन कर विवाद का कारन बनते है।
और कुछ ऐसे व्यक्ति जो किसी भी प्रकार से जिनकी बुद्धि इस प्रकार की हो चुकी है की यह सही हो अथवा गलत , हम तो प्राचीनता को ही मानेंगे। अगर कोई नई बात सही है और सिद्धांत के अनुसार ठीक है और वह प्रमाणित रुप से सत्य है हम उसे नहीं मानते है। आज के समय में जो द्रक सिद्ध पंचांग के द्वारा ग्रहण के विषय में सेकंड तक की शुद्धता का समय दिया जाता है ,गृह लाघवीय ग्रहण गणना विधि से उसमें घंटो का अंतर आता देखकर अब वह भी विगत वर्षों से द्रक सिद्ध विधि का ग्रहण विवरण छापते हैं।
बंधुओं और इसी प्रकार एक वेघ की स्थिति होती है जिसमें कहीं-कहीं पुरातन आचार्यों ने यह कहा है भारत के पंचागो की गणना सूर्य उदय से आरंभ होती है और सूर्य उदय होने के उपरांत व्रत के निर्धारित विषय में जो समय उपलब्ध होता है उसे स्थानीय लोकलटाइम माना जाता है, लोकल टाइम के लिए आपको हमारे पुराने समय को स्मरण करते हुए जो सूर्य घड़ी बने हैं जिसमें लोग एक गोल चक्कर के ऊपर, एक उठा जैसा हाथ, जैसा पत्थर बना रहता था उसके द्वारा जो स्थानीय समय माना जाता था उसके अनुसार उसकी गणना की गई थी आज के समय में हमारे यहां पर पूरे भारत में समान रूप से प्रयोग होने वाले स्टैंडर्ड टाइम का प्रयोग होता है जो पूरे भारत में एक समान होता है परंतु जो सूर्य घड़ी का समय है वह अगर आप किसी बड़े शहर में मुंबई, दिल्ली ,कोलकाता इत्यादि अलग-अलग भागों में लगा देंगे तो प्रत्येक सूर्य घड़ी में अलग-अलग समय आएगा। अपितु सूर्य घड़ी का परिमाण इतना शुद्ध है की अगर आप इसे लगभग 400 मीटर दूरी पर भी लगाएंगे तो सूर्य घड़ी के जाने पर सेकंड के किसी भाग का कोई अंतर आएगा जिसे वह सूर्य घड़ी बताती है।व्रत में तिथि मान एवं वेघमान के विषय में पुरातन आचार्यों का बहुत मतभेद है ,अतः तिथि वेघ के कारन व्रत निर्णय में भिन्नता होती है.
परंतु इस समय में मापन की विधि आज के समय में समाप्त हो चुकी है, तो इस विषय में धार्मिक दलों का कर्तव्य है की कुछ धार्मिक मत का पालन करने वाले व्यक्ति अपने मत की स्थिति को त्याग करके धर्म के कल्याण की दृष्टि से यदि धर्म को बचाना है तो वह इस पंचांग भेद एवं तिथि वेघ के झंझट को समाप्त करके संपूर्ण भारत में एक स्थान पर सूर्य उदय को एक समान मान करके उसके अनुसार व्रत और पर्व के निराधान करके की यही स्थिति बनाए तो उसे ही धर्म का कल्याण होगा,और यह सामान्य धार्मिक जन जो एक व्रत को 2 दिन होने पर मत भ्रमित होता है, तो उसे उसका छुटकारा होगा, और धर्म की भी हानि नहीं होगी, और हम अपने को श्रेष्ठ स्थिति की भावना में महसूस कर सकेंगे।
परंतु इस समय में मापन की विधि आज के समय में समाप्त हो चुकी है, तो इस विषय में धार्मिक दलों का कर्तव्य है की कुछ धार्मिक मत का पालन करने वाले व्यक्ति अपने मत की स्थिति को त्याग करके धर्म के कल्याण की दृष्टि से यदि धर्म को बचाना है तो वह इस पंचांग भेद एवं तिथि वेघ के झंझट को समाप्त करके संपूर्ण भारत में एक स्थान पर सूर्य उदय को एक समान मान करके उसके अनुसार व्रत और पर्व के निराधान करके की यही स्थिति बनाए तो उसे ही धर्म का कल्याण होगा,और यह सामान्य धार्मिक जन जो एक व्रत को 2 दिन होने पर मत भ्रमित होता है, तो उसे उसका छुटकारा होगा, और धर्म की भी हानि नहीं होगी, और हम अपने को श्रेष्ठ स्थिति की भावना में महसूस कर सकेंगे।
पंडित राकेश चतुर्वेदी
3 Comments
Jai shri. Krishna
ReplyDeletejai shri radhey
DeleteJai shri radhey
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