ऋषि पंचमी व्रत कथा – संपूर्ण कहानी हिंदी में
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ऋषि पंचमी व्रत कथा 2025 |
रिशि पंचमी व्रत क्या है?
रिशि पंचमी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है जो भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन ऋषि मुनियों और सातवें वेद के रचयिता माने जाने वाले सप्तर्षि (बृहस्पति, अगस्त्य, कण्व, वारुण, गोत्रिय, जमदग्नि, वैशंपायन) की पूजा की जाती है। यह व्रत खासकर महिलाओं द्वारा किया जाता है ताकि वे अपने पितरों, ऋषियों और कुल के पूर्वजों का सम्मान कर शुद्धता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
रिशि पंचमी व्रत कथा: बहू के पाप और सप्तर्षि देवों की परीक्षा
बहुत समय पहले की बात है कि एक ब्राह्मण परिवार में बहू आई। वह अपने मासिक धर्म के समय नियमों का ठीक से पालन नहीं कर पाई। अनजाने में वह घर के स्वच्छ स्थान जैसे रसोई में चली गई। यह एक बड़ा पाप माना गया क्योंकि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को स्वच्छता के नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
जब परिवार के लोग यह बात जान पाए तो उन्हें बहुत चिंता हुई क्योंकि इस पाप का असर पूरे परिवार और कुल पर पड़ने वाला था। उस परिवार के ससुर ने सोचा कि इसे कैसे दूर किया जाए। तभी उन्हें पता चला कि सप्तर्षि देवों की पूजा और ऋषि पंचमी व्रत से इस पाप का प्रायश्चित हो सकता है।
ससुर बहू को लेकर सप्तर्षि देवों के पास गए। सप्तर्षि देवों ने बहू की परीक्षा ली और उसकी श्रद्धा और शुद्धता को परखा। बहू ने अपने पापों को स्वीकार किया और ऋषि पंचमी व्रत करने का संकल्प लिया।
उस दिन से, ऋषि पंचमी व्रत का विधान हुआ और इसे महिलाओं के लिए अत्यंत पवित्र व्रत माना गया, ताकि वे अपने कुल के ऋषियों और पूर्वजों का सम्मान कर सकें और अपने परिवार को पापों से मुक्त रख सकें।
कथा का सारांश:
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बहू मासिक धर्म में अनजाने में गलती करती है (रसोई में जाना)
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परिवार में पाप और अशुद्धि की स्थिति पैदा होती है
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ससुर बहू को सप्तर्षि देवों के पास लेकर जाते हैं
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सप्तर्षि देव बहू की परीक्षा लेते हैं
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बहू ऋषि पंचमी व्रत का संकल्प लेती है
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व्रत करने से कुल के पाप और अशुद्धि दूर होती है
ऋषि पंचमी व्रत का महत्व:
यह व्रत महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान शुद्धता और नियमों का पालन करने की सीख देता है। साथ ही यह कुल के पूर्वजों का सम्मान करने और परिवार में सुख-शांति बनाए रखने का मार्ग दिखाता है।
रिशि पंचमी व्रत का महत्त्व और लाभ
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इस व्रत से पापों का नाश होता है और मानसिक शांति मिलती है।
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स्त्रियाँ अपने कुल के ऋषियों और पूर्वजों को सम्मानित कर स्वस्थ और सौभाग्यशाली जीवन पाती हैं।
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यह व्रत स्वच्छता और आत्मशुद्धि का प्रतीक है।
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सप्तर्षि देवताओं की पूजा से संतान सुख, धन-समृद्धि और परिवार में सौहार्द बढ़ता है।
रिशि पंचमी पूजा विधि – कैसे करें पूजन?
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सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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साफ जगह पर ऋषि पंचमी का थाल सजाएं जिसमें दीपक, कपूर, अक्षत (चावल), सिंदूर, सुपारी, फल और पुष्प हों।
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सप्तर्षि भगवान के चित्र या मूर्ति के सामने व्रत कथा का पाठ करें।
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पंचमी के दिन सूर्य नमस्कार करें और सप्तर्षि देवताओं को जल अर्पित करें।
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पूरे दिन व्रत का पालन करें, अनाज और जल का सेवन मात्र करें (किसी भी प्रकार के अनिष्ट कर्म से बचें)।
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शाम को पूजा संपन्न कर ऋषि पंचमी कथा सुनें और प्रसाद ग्रहण करें।
रिशि पंचमी व्रत के नियम और सावधानियाँ
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व्रत के दिन साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
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व्रत के दौरान अशुद्ध कर्म से बचें।
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भोजन में हल्का और शुद्ध भोजन करें।
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व्रत कथा श्रद्धा से सुनें और ध्यान लगाकर पूजन करें।
रिशि पंचमी व्रत का धार्मिक और सामाजिक महत्व
रिशि पंचमी व्रत न केवल आत्मा की शुद्धि करता है, बल्कि परिवार, समाज और संस्कृति की रक्षा भी करता है। यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। साथ ही यह महिलाओं को परिवार के स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए प्रेरित करता है।
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