🪔 संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | पूजा विधि | लाभ | सम्पूर्ण जानकारी
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संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा |
✨ संकष्टी चतुर्थी क्या है?
संकष्टी चतुर्थी, जिसे कई स्थानों पर संकटा चौथ भी कहा जाता है, भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर चंद्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, और इसका मुख्य उद्देश्य होता है — संकटों का नाश और मनोकामना पूर्ति।
विशेषकर जब यह चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, जिसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
📜 संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (सम्पूर्ण व्रत कथा)
संकट चतुर्थी व्रत कथा (भाद्रपद मास की संकट चतुर्थी)
संकट चतुर्थी हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन माता पार्वती के पुत्र, भगवान श्री गणेश जी का श्रद्धापूर्वक पूजन किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति सभी प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाता है। विशेष रूप से भाद्रपद मास की संकट चतुर्थी में भगवान गणेश के एकदंत स्वरूप की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। आइए, जानते हैं भाद्रपद संकट चतुर्थी की कथा।
प्राचीन काल में नल नामक एक राजा था, जो अत्यंत वीर और श्रेष्ठ था। उसकी सुंदर पत्नी का नाम दमयंती था। दुर्भाग्यवश, एक श्राप के कारण राजा नल को अपना राज्य खोना पड़ा और पत्नी से भी दूर होना पड़ा। उस समय महर्षि शरभंग के निर्देश पर रानी दमयंती ने संकट नाशक गणेश चतुर्थी का व्रत किया और अपने पति को पुनः प्राप्त किया।
राजा नल पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा था। एक बार डाकुओं ने उसके महल में प्रवेश कर सारी संपत्ति, हाथी और घोड़े चुरा लिए और महल को आग लगा दी। राजा नल ने जुए में भी अपना राजपाट हार दिया था। वह और रानी दमयंती वन में जाकर रहने लगे, जहां वे दोनों अपने अलग-अलग कष्ट झेल रहे थे।
एक दिन वन में भ्रमण करते हुए रानी दमयंती को महर्षि शरभंग से भेंट हुई। वह योग साधना में लीन थे। रानी ने उनकी ओर ध्यानपूर्वक देखते हुए प्रार्थना की, “हे मुनि श्रेष्ठ! मैं अपने प्रिय पति के वियोग में इस वन में भटक रही हूँ। कृपया मुझे बताइए कि मैं कब उन्हें पुनः प्राप्त कर पाऊंगी।”
महर्षि ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा, “हे परम पतिव्रता, आपको यह कठिनाई श्राप के कारण झेलनी पड़ रही है। आप भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की संकट चतुर्थी को भगवान गणेश के एकदंत स्वरूप की पूजा करें। इस दिन व्रत रखें, दिनभर उपवास करें और रात को चंद्रमा का दर्शन कर व्रत पूर्ण करें। यदि आप यह व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति से करेंगी, तो आपका पति अवश्य लौट आएगा।”
रानी दमयंती ने महर्षि के बताए अनुसार भाद्रपद संकट चतुर्थी का व्रत रखा। इसके फलस्वरूप उन्हें पुनः अपने पति और पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा नल ने अपने सारे वैभव और सुख फिर से प्राप्त किए। यह व्रत सभी विघ्नों को दूर करने वाला और सुख देने वाला सर्वोत्तम उपाय माना गया है।
🧘♀️ संकष्टी चतुर्थी व्रत कैसे करें?
🕗 व्रत का समय:
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सूर्योदय से चंद्र दर्शन तक उपवास।
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रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूर्ण होता है।
🪔 व्रत विधि:
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प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
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दीपक, धूप, फूल, दूर्वा, मोदक से पूजा करें।
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व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
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दिन भर निर्जला या फलाहार व्रत रखें।
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रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करें।
📿 पूजा सामग्री:
सामग्री | विवरण |
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गणेश प्रतिमा | मिट्टी या धातु की |
दीपक | घी या तेल का |
धूप | अगरबत्ती |
फूल | लाल या पीले |
दूर्वा | 21 तिनके |
मोदक | भोग के लिए |
रोली-अक्षत | तिलक हेतु |
जल पात्र | अर्घ्य के लिए |
🌟 व्रत के लाभ (Sankashti Chaturthi Vrat Ke Fayde)
लाभ | विवरण |
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🛡️ संकटों से रक्षा | जीवन की परेशानियाँ दूर होती हैं। |
💰 धन-संपत्ति की प्राप्ति | आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। |
📖 बुद्धि और विवेक | विद्यार्थियों के लिए लाभदायक व्रत। |
🧘 मानसिक शांति | तनाव व भय से मुक्ति मिलती है। |
👨👩👧👦 पारिवारिक सुख | संतान सुख और पारिवारिक प्रेम बढ़ता है। |
❌ इस दिन क्या न करें:
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झूठ न बोलें
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चंद्र दर्शन दोपहर या शाम से पहले न करें
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मांस, शराब, लहसुन-प्याज़ से परहेज करें
🔚 निष्कर्ष (Conclusion):
संकष्टी चतुर्थी व्रत न सिर्फ आध्यात्मिक दृष्टि से फलदायी है, बल्कि यह एक ऐसा उपाय है जो जीवन से नकारात्मकता, बाधाएं और संकटों को दूर करने में सहायक होता है। भगवान गणेश की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
📌 FAQs:
Q. संकष्टी चतुर्थी पर क्या खाना चाहिए?
फल, दूध, मूंगफली, साबूदाना, आलू आदि फलाहार।
Q. क्या स्त्रियाँ यह व्रत रख सकती हैं?
हां, यह व्रत पुरुष और स्त्री दोनों रख सकते हैं।
Q. चंद्र दर्शन क्यों आवश्यक है?
संकष्टी व्रत चंद्र दर्शन व अर्घ्य देने के बाद ही पूर्ण होता है।
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