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Bhakti Ras Pravah-भक्ति रस प्रवाह

हाथ पर कलावा क्यों बांधतेहैं

हाथ पर कलावा बांधने से क्या फायदा होता है 

       
हाथ पर कलावा क्यों बांधतेहैं
हाथ पर कलावा क्यों बांधतेहैं

 बंधुवर कलावा को हमारे यहां पर सूत्र कहा जाता है , और इसका उपयोग भगवान के पूजन में किया जाता है ,इनका तीन तरह से प्रयोग होता है
पहला भगवन के पूजन के समय , भगवान के  पूजन का क्रम ठीक उसी प्रकार से है जिस प्रकार हम हमारे जीवन यापन करते हैं, जिस प्रकार हम हमारे शरीर के साथ व्यवहार करते हैं , भगवान के  पूजन के क्रम में सर्वप्रथम भगवान को 5 बार जल प्रदान करने का क्रम प्राप्त होता है पहला पैर धोने के लिए  दूसरा हस्त करने के लिए तीसरा स्नान के लिए और चौथा स्नान के बाद पुनः आचमन की भावना से !
नहाने के बाद व्यक्ति सबसे पहले क्या करता है वस्त्र पहनता  हैं , हमारे यहां पर दो प्रकार के कपड़े को बांटा गया है जो नीचे से पहना जाए वह वस्त्र  जो ऊपर से ओड़ा   जाए वह उपवस्त्र ,  भगवान को वस्त्र व उपवस्त्र के लिए कलावा प्रदान किया जाता है, 

 सूत्र के विषय में धर्म शास्त्र का कहना है भगवान को उप  वस्त्र के लिए आठ  आंगुल  लंबा कलावा या सूत्र चढ़ाएं उसके बाद भगवान को जल प्रदान करें इसके बाद भगवान को जनेऊ पहनाया जाता है प्रतिदिनजनेऊ नहीं पहनाया जाता ,लेकिन पूजन के समय  भगवान को जनेऊ प्रदान किया जाता है , उस यज्ञ सूत्र को नियमित भगवान को फिर 8 अंगुल का अलावा प्रदान करें, 
 भगवान के पूजन के समय प्रदान किए जाने वाले वस्त्र उपवस्र  व  यज्ञ सूत्र के लिए क्रमश मध्य मध्य में आचमनके लिए जल प्रदान करते हुए और  आठ आंगुल लंबा कलावा  तीन बार भगवान के लिए अर्पित करें इस प्रकार भगवान के पूजन में कलावा का उपयोग होता है

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कलावा का दूसरा प्रयोग ,पूजन करने वाले आचार्य के साथ होता है ,   जो यजमान पूजन कर रहा है वह आचार्य को कलावा  बांधता  है , कलावा का एक नाम वरण सूत्र भी कहा जाता है वरण अर्थात चयनित करना !

 यजमान अपने पूजन करने के पूर्व सबसे पहले आचार्य का चयन करता है और चयन करने के पीछे भावना होती है आचार्य से प्रार्थना करना , पूजन कराने के लिए जो ब्राह्मण प्रस्तुत है वह आचार्य से प्रार्थना करता है हे विप्रश्रेष्ठ में अपने इच्छित फल की प्राप्ति के लिए उद्देश्य के लिए  भगवान के पूजन करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं और वह पूजन जिसकी विधि के बारे में कुछ नहीं जानता आप जाने वाले  श्रेष्ठ जन है जिस  प्रकार से शास्त्रीय  ढंग से पूजन किया जाना चाहिए उस प्रकार से इस पूजन को  संपन्न कराने के लिए मैं आपका चयन करता हूं
 इस भावना के साथ  यजमान  ब्राह्मण के तिलक करके उसके सीधे हाथ पर कलावा बांधता  है , यह कार्य को  कराने वाले आचार्य  यदि   बहुत से  ब्राह्मण को बैठाकर यदि कोई जप पाठ करा  रहे हैं तो ये कलावा उस प्रत्येक ब्राह्मण के बांधा जाता है उस समय आचार्य द्वारा कहा जाता है , हे श्रेष्ठ पुरुष आपके द्वारा किए जाने वाले वर्ण को मैं स्वीकार करता हूं इस व्रत को स्वीकार करने के साथ ,  इच्छित फल की प्राप्ति हो इसका प्रयास करने का मैं निश्चित करता हूं 

इस प्रकार कलावा के दो प्रयोग होते हैं पहला भगवान को अर्पित दूसरा हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्य के लिए उस आचार्य का वरन करना 

तीसरी स्थिति है कार्य कराए जाने वाले आचार्य के द्वारा कलावे को बांधना , आचार्य  यजमान पुरुष के सीधे हाथ में और स्त्री यजमान के उल्टे हाथ में आचार्य कार्य करा रहा है वह कलावा बांधते हैं
 देखिये  जब कलावा भगवान को चढ़ाया जाता है तो वह वस्त्र उपवस्त्र और  यज्ञ सूत्र का प्रतिनिधित्व करता है जब वह कलावा आचार्य के बांधा जाता है तो वह वर्ण सूत्र कहा जाता है जब वह  कलावा यजमान के बांधा जाता है तो वह रक्षा सूत्र कहा जाता है


हाथ पर कलावा बांधने के क्या विधि है  

उस रक्षा सूत्र का तात्पर्य और विधि क्या है , जो यजमान कार्य को कर रहा है उससे देवताओं का पूजन कराने के बाद वह यजमान से कहें की वह अपने दोनों हाथों को  जितना लंबा फैला सकता है उतना लम्बा  फैलाएं और जब यजमान अपने हाथों को फैलाले तो उसके सीधे हाथ की मध्यमा से लेकर उल्टे हाथ की मध्यमा  तक एक रक्षा सूत्र नापा जाए ओर उसे  नापने के उपरांत उसे तिगुना लपेटा जाए उसके उपरांत उसे यजमान के सीधे हाथ में पुरुष के वाधा जाए तो उसकी भावना होती है कि जो श्रेष्ठ देवताओं का पूजन किया गया ,  देवताओं की कृपा के फल स्वरुप यजमान के सभी प्रकार के  विघ्न से उसकी रक्षा हो और उसे श्रेस्ठ  धन-धान्य सुख और मनोवृति इच्छा फल की प्राप्ति हो,  प्रत्येक संकट से भगवान आपकी रक्षा करें इस भावना के साथ आचार्य यजमान के कलावा बांधते हैं इसलिए इसे रक्षा सूत्र कहा जाता है। 

 आपके  हमारे पूर्वजों की बुद्धि की श्रेस्टता है की   यदि इस प्रकार दोनों हाथों को फैलाकर उसकी मध्य सीधे हाथ की उंगली से लेकर उल्टे हाथ कि मध्यता तक जो रक्षा सूत्र नापा जाता है तो यजमान तिगुना हाथो से लपेटता है तो उसमें तीन  फेरे  लगते हैं चौथा फेरा  नहीं लग पाएगा यह मनुष्य की लंबाई का एक गुडात  है, इस प्रकार रक्षा सूत्र से यजमान को समस्त  प्रकार से विघ्नो  से मुक्ति प्राप्त हो , भगवान की इच्छा से मनोवृति इच्छा की प्राप्ति हो इस भावना के साथ में रक्षा सूत्र यजमान के बांधा जाता है 

इस कलावे का यह रहश्य मेरी बुद्धि के अनुसार जैसा भी हुआ मैंने आप को प्रकट किया कहीं पर ग्रथ में इस प्रकार प्राप्त होता है कि यजमान को सीधा खड़ा करके उसके पैर के अंगूठे से लेकर मस्तिक तक अलावा को लंबा नाप कर के फिर उसे यजमान की कलाई पर तीन गुणा करके बाधे  तो उस मै भी तीन चकर ही यजमान की कलाई पर आते हैं यह बात भी अनुभव सिद्ध है






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